Thursday, 30 November 2017

पेड़ो से भी रिश्ता Trees Relationship

पेड़ो से भी रिश्ता Trees Relationship

 The Trees Relationship पेड़ो के साथ अपना रिश्ता बनायें

जिस तरह आत्मा और शरीर एक दुसरे से जुड़े होते है, उसी तरह से मनुष्य और पेड़ो का रिश्ता होता है, प्रक्रति और और मनुष्य के इसी रिश्ते के बारे में आपको The Trees Relationship में बताया गया है.
नदी के पास एक पेड है. जब सूर्योदय होने को होता है तो कोई सप्ताह से हम उसे देख रहे है. जैसे ही सूर्योदय होता है अचानक पूरा पेड सुनहरा हो जाता है, सारे पत्ते जीवंत हो जाते है और कई घंटो तक आप उस पेड को निहारते रहते है. कौनसा पेड है यह महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण है कितना सुन्दर पेड है धरा पर विस्तारित प्रकृति से पल्लवित.

Trees Relationship - पेड़ो से भी रिश्ता बनायें
Trees Relationship
और जब सूरज और ऊपर आ जाता है, पत्ते एक तरह से नाचने लगते है, प्रत्येक क्षण पेड़  किसी नए रूप में लगता है. सूर्योदय के पहले एकदम शांत सौम्य और निर्दोष. दिन की शुरुआत पर जब पत्तो से रौशनी गुजरती है तो ऐसा लगता है कि यह अप्रतिम है. और दोपहर में जब इसकी छाया लम्बी हो जाती है तो हम इसके नीचे शांति से विश्राम कर सकते है.

सूरज की रौशनी से बचकर भी यहाँ आपको अकेलापन नहीं लगता है, क्योकि पेड आपके साथ Trees Relationship होता है. जब आप उसके नीचे बैठते है, तो एक रिश्ता बन जाता है सुरक्षा और आजादी का, जो सिर्फ पेड हो जानता है.

और जब सध्यां को, पश्चिमी आकाश लालिममय हो जाता है, फिर से पैस एक दम शांत और धुंधला हो जाता है, जैसे अपने आपको आपकी नजरो से दूर ले जा रहा जो और जब आकाश लाल पीला और तारो के बीच ओझल हो जाता है, पेड अब भी शांत, सोम्य खड़ा हुवा रात्रि विश्राम कर रहा है.

अगर आप एक पेड से रिश्ता बनाते है, तो आप एक इंसान से भी उत्तरदायी हो जाते हो लेकिन अगर आप एक पेड से सम्बन्ध नहीं बना सकते तो आप एक मनुष्य और मनुष्यता से भी रिश्ता खो देते हो.

हम कभी पेड को गहराई से नहीं देखते है और न कभी उसे हाथ ही लगाते है. कभी इसका अकेलापन अनुभव नहीं करते है और नहीं कभी उसकी अंतरात्मा की आवाज सुनते है. हम कभी पत्तों की सरसराहट नहीं सुनते और नहीं सुबह की ठंडी-ठंडी हवा का रेशमी अहसास. पत्तो के ऊपर से ही महसूस करते है हम और न महसूस करते है तने और जड़ो की नाद.

यह सब सुनने के लिए आपको चेतन रूप में संवेदन शील होना पड़ेगा, क्योकि यह आवाज विश्व में व्याप्त कोलाहल नहीं है और नहीं द्मांगों में होने वाली उथल पुथल. यह आवाज मनुष्यों के अंतर: कलह और युद्ध की भी नहीं है, अपितु यह आवाज ब्रम्हांड की आवाज है.

बड़ा ही दुखद है की हमारा प्रकृति से कीड़े मकोडों से, कूदते हुए मेढकों से और उल्लू से, जो अपनी प्रेयसी के लिए ऊ – ऊ आवाज निकाल कर बेताब है, से रिश्ता धीरे-धीरे टूट रहा है, हमारी पृथ्वी और इसके जीवन से रिश्ता बनाने की सोच धीरे—धीरे ख़त्म हो रही है.

अगर प्रकृति से हमारा रिश्ता बन जायेगा तो कभी भी हम एक बन्दर, कुत्ते और सूअर को अपने स्वार्थ के लिए कत्ल नहीं करेंगे. हम अपने शरीर के घाव कई तरह से ठीक कर सकते है, लेकिन दिमागी हालत में सुधार अलग है. यह सुधार प्रकृति के साथ रहने पर आता है, जब आप पेड पर लगे संतरे या पत्थरो से लगी घास पर ओस की बूंदें देखते है.

यह कोई भावुकता या रोमांटिक कल्पना नहीं है, अपितु कड़वा सच है की मनुष्य ने लाखो व्हेलों को मारा डाला और अभी भी मार रहा है. जो कुछ हम उससे पा रहे है, वह दूसरे तरीके से भी पा सकते है. लेकिन कत्ल करना तो मनुष्य की आदत है, तभी तो हम उछलते हिरण को सुन्दर कृष्णमग और भीमकाय हाथी को भी मार देते है.

हमें एक दूसरे को मारने में सुकून मिलता है. यह मारकाट जब से मनुष्य इस धरती पर अवतरित हुआ है, तब से चल रही है. अगर हम प्रकृति से रिश्ता बना लेंगे, अगर पेड से सुन्दर फलों से, झाडियों से, घास से और दूर भागते बादलों से रिश्ता बना लेंगे, तो हम अपने स्वार्थ के लिए कभी भी दूसरे इंसान का कत्ल नहीं करेंगे. कभी एक पेड पर आरी नहीं चलानेंगे और नहीं एक छलांग लगाते हिरण को मारने में हम आनंद का अनुभव करेंगे.

हम हमेशा रात दिन युद्ध के विरुद्ध खड़े हो जाते है, लेकिन कभी भी व्यक्तिगत उन्माद के विरुद्ध नहीं. हमने कभी नहीं कहा की किसी भी जीवित प्राणी का कत्ल करना इस धरा पर सबसे बड़ा पाप है.

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