Monday, 16 October 2017

खाटू स्याम से पहले किस की होती है पूजा



                                        खाटू स्याम से पहले किस की होती है पूजा 
     
                                                             बीड़ बबरान
भीमसेन अपनी पतनी अहलवती के साथ नागलोक से नासिक (महाराष्ट्र ) में एक शिवालय                                में आकर रुके  और कुछ समय बाद भीमसेन , अहलावती  से विदा लेकर अपने परिवार के
 पास लौट आये , उस समय अहलावती गरबवती थी । समय आने पर अहलावती ने पुत्र को
 जनम दिया जिसका   नाम   बर्बरीक रखा
दोनों माँ-बेटा वहा रहकर संकर जी की आराधना करते और ब्राह्मणो को उनकी
तपस्या में रक्षा करते थे । एक दिन नारद जी का वंहा आगमन हुआ और उन्होंने
सुचना दी की कुछ दिन पछात कोरवो और उसके परिवार (पांडवो ) के बिच महाभारत
की लड़ाई होने वाली थी अत:बर्बरीक को अपने परिवार की साहित्या करनी चाहिए ।
तत्पचात बर्बरीक ने लड़ाई में जाने की आज्ञा मांगी और अहलवती ने भारी मन से आज्ञा
दी और सख्त निर्देश दिया की वहा पहुंचते ही कृष्ण जी से भेट करना और जैसा वो कहे
वैसा ही करना । बर्बरीक वंहा से कुरक्षेत्र  के लिए चल पढ़े और रस्ते में विश्राम करने
का लिए रुके जहा पर कुँवा और पीपल का पेड़ था । वँहा पर श्री कृष्ण ब्राह्मण के वेश
में बर्बरीक से मिलने आये और बर्बरीक से पूछने पर बताया की वो कुरक्षेत्र में होने वाली
महाभारत की लड़ाई में अपने परिवार की साहयता की लिए जा रहा है ।ब्राह्मण के पूछने
पर बर्बरीक ने बताया की उसका धनुष और बाण से पूरी सेना का संहार करके वो बाण
तरकश में वापस आ जायगा ।
ब्राह्मण देव ने अविशवास जताते हुवे कहा अगर शक्ति है तो पीपल के सारे पतों में छेद
कर दे । तुरंत ही बर्बरीक ने बाण का संधान करके छोड़ा और पलक छपकते ही बाण
ने सारे पते बींध दिए और वापस आकर कृष्ण जी के पर के पास आकर रुक गया
 क्योकि एक पता कृष्ण के पर के निचे था कृष्ण जी ने पर उठा दिया और तीर उसको                                   बिंध कर वापस तरकस में चला
गया ।तभी ब्राह्मण देवता चतरभुज नारायण स्वरूप में प्रकट हो गए और बर्बरीक को                              आशीर्वाद देकर चले गए । जिस स्थान पर यह मिलन हुवा वो आज "बीड़ बबरान " के                                     नाम से जाना जाता है ।इस जगह आज भी वो कुँवा और पीपल के पेड़  जिसका हर पता                              आज भी बिंधा हुवा होता है । यंहा बर्बरीक ने कृष्ण को शीश के दान दिया था और उनका                          असली शीश यही बरबरान में ही है ।आज भी शीश और पेड़  दोनों बीड़ बबरान में ही है ।                             खाटू स्याम में इनका शीश प्रकट हुवा है इस  लिए इनको शीश का दानी कहा जाता है ।                              पहले पूजा यहाँ करने जरुरी होती है ।

                                                    शीश के दानी की जय 

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